आंखें बंद करते ही,
अंधेरों के बीच में,
एक उजाला होता है |
धीरे - धीरे खामोशी के बीच,
कुछ आहटें, सनसनाहट में,
तब्दील होने लगती है |
जैसे कोई बुलाना चाहता है,
पर आवाज देने से कतराता है |
ऐसा लगता है जैसे
कोई बात तो करना चाहता है
पर उसके पास कोई अल्फाज़ नहीं है
कुछ कहने को |
वो हवाओं की सनसनाहट फिर से,
धीरे धीरे खामोश होने लगती है,
वो उजाला अंधेरों के बीच
कहीं खोने लगता है,
और फिर आंखें खुल जाती है.....!
आंखे
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